
आज ब्राम्हणवाद या मनुवाद बहुत प्रचलित शब्द है पर इसके मायने अधिकांश लोगों को नहीं मालूम होते हैं
इसलिए अक्सर अर्थ का अनर्थ होते रहता है,जिसे जानना जरूरी है-
ब्राहमणवाद या मनुवाद को परिभाषित करते हुए ,इसकी व्याप्ति और शोषित जातियों पर इसके पड़ने वाले प्रभाव
ब्राहमणवाद या मनुवाद को परिभाषित करते हुए ,इसकी व्याप्ति और शोषित जातियों पर इसके पड़ने वाले प्रभाव
का उल्लेख करते हुए बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने कहा है : " मेरी मान्यतानुसार ' ब्राह्मणवाद का मतलब
है जो स्वतन्त्रता ,समानता और मैत्री को इनकार करते हैं,इस अर्थ में यह सभी वर्गों में व्याप्त है और सिर्फ ब्राह्मणों
तक ही सीमित नहीं है यद्यपि वे उसके निर्माता हैं,इसीलिए इसका नाम ब्राम्हणवाद पड़ा,लेकिन हमेशा से
ब्राहमणवाद सभी जगह व्याप्त है और सभी वर्गों के विचारों तथा कृत्यों को नियंत्रित करता है ,यह अविवादित तथ्य
है,यह भी सत्य है कि ब्राह्मणवाद कुछ वर्गों को विशेषाधिकार देता है,यह कुछ अन्य वर्गों को अवसर की समानता से
वंचित करता है । ब्राह्मणवाद का प्रभाव केवल अन्तर्जातीय खान पान या अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्धों जैसे
सामाजिक अधिकारों तक ही सीमित नहीं है,यदि वैसा भी होता तो कदाचित किसी को आपत्ति नहीं होती,परन्तु
वैसा नहीं है, यह सामाजिक अधिकारों को पार करके नागरिक अधिकारों तक व्याप्त हो जाता है,सार्वजनिक कुओं
का पानी , सार्वजनिक आवागमन , सार्वजनिक भोजनालयों का उपयोग नागरिक अधिकारों में आता है,वह सब जो
सार्वजनिक उपभोग के लिए उद्धिष्ट हो या सार्वजनिक कोष के द्वारा व्यवस्थित किया जाता हो प्रत्येक नागरिक के
लिए खुला होना चाहिए,परन्तु ऐसे करोड़ों लोग हैं जिनके इन नागरिक अधिकारों को नकारा जाता है, क्या कोई
सन्देह कर सकता है कि यह ब्राहमणवाद का परिणाम है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रभावशाली है और जो अब
भी एक जीवित विद्युत तार की तरह कार्य कर रहा है ?
ब्राह्मणवाद इतना सर्वव्यापी है कि यह आर्थिक अवसरों के क्षेत्र को भी प्रभावित करता है,शोषित वर्ग के एक श्रमिक
को लीजिए और उसके अवसरों की एक ऐसे श्रमिक के साथ तुलना कीजिए जो शोषित वर्ग से सम्बन्धित नहीं
है,उसे क्या अवसर मिल रहे हैं ? वह किस अवस्था में कार्य कर रहा है या वहां उसकी प्रगति होती है ? यह कुख्यात
है कि ऐसे अनेक व्यवसाय हैं जो दमित वर्ग के श्रमिक के लिए इसलिये बन्द हैं क्योंकि वह अस्पृश्य है, " इस प्रकार
स्पष्ट है कि ब्राह्मणों और उनके सहयोगियों द्वारा स्वतन्त्रता ,समानता और मैत्री के आदर्शों का उल्लंघन करते हुए
समाज के प्रत्येक क्षेत्र में ब्राह्मणों की सर्वोच्चता को बनाये रखने तथा शोषित जातियों की दासता को स्थायी रखने
का सिद्धांत ही ' ब्राह्मणवाद ' या ' मनुवाद ' है तथा इस सिद्धांत को मानने वाले लोग ही चाहे वो किसी भी धर्म ,
सम्प्रदाय ,लिंग या जाति के हों ' ब्राह्मणवादी ' या ' मनुवादी ' कहलाते हैं-
- मिशन अम्बेडकर
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