चंद्रशेखर बनाम मायावती | बहुजन समाज पार्टी । आजाद समाज पार्टी | BSP Vs ASP चंद्रशेखर बनाम मायावती | बहुजन समाज पार्टी । आजाद समाज पार्टी | BSP Vs ASP - बहुजन जागृती

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डॉ बाबासाहेब आंबेडकर : बहुजन समाजाची राजनीतिक आणि सामाजिक चळवळ

Tuesday, May 18, 2021

चंद्रशेखर बनाम मायावती | बहुजन समाज पार्टी । आजाद समाज पार्टी | BSP Vs ASP

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बहुत से साथी इस बात को लेकर चिंचित हैं कि कहीं आसपा(आजाद समाज पार्टी) की वजह से बसपा रूपी साहब 

कांशीराम जी का घर ढह ना जाए। चिंता से पहले यह जानें कि क्या आसपा का उदय उन्हीं कारणों और प्रक्रिया के 

तहत हुआ है जिनसे बसपा का हुआ है।अगर ऐसा है तो नुकसान पहुँचाएगी अन्यथा नही।

इसका उत्तर तुलनात्मक अध्ययन से निकलेगा। दोनों का मूलाधार मिशन मूवमेंट हैं।

1.एक तरफ साहब ने 1965 में काम शुरू किया और पार्टी 1984 में बनाई और दूसरी तरफ भाई ने काम 2015 में 

शुरू किया और पार्टी 2020 में बनाई।

2.साहब अस्तित्व में तब आए जब उन्होंने बामसेफ(बुद्धिजीवी लोगों का समूह) को खड़ा किया और भाई अस्तित्व 

में उत्तर प्रदेश के सब्बीरपुर गांव की एक घटना से आए।

3.साहब की पार्टी बनाते समय उम्र 50 वर्ष थी और भाई की पार्टी बनाते समय उम्र 35वर्ष थी।

4..साहब ने विचार की बात की और भाई ने तलवार की।

5.साहब ने पार्टी तब बनाई जब उनके साथ देश के बुद्धिजीवी लोग खड़े हुए और भाई ने पार्टी तब बनाई जब उनके 

साथ बहन जी के विरोधी खड़े हुए।

6. साहब के काम में मीडिया( Mian Stream Media) ने पूरा रोड़ा अटकाया और भाई के काम में उसी मीडिया ने 

पूरा सहयोग दिया।

7.साहब को कांग्रेस ने पूरी तरह नष्ट करने का प्रोग्राम बनाया और भाई की उसी कांग्रेस ने भूरी भूरी प्रसंसा की।

आदि इस प्रकार आप भी बहुत अंतर निकाल सकते हैं।

अब उपरोक्त सभी बिंदुओं का क्रम से विश्लेष्ण करते हैं।

1. साहब ने पार्टी 19 साल बाद बनाई और भाई ने पार्टी मात्र 5 साल बाद।(जमाना एडवांस हो सकता है परंतु 

अनुभव में भारी कमी रही)

2. घटना से निकला हुआ नेता तेज तो चल सकता है परंतु लम्बा नही, उसमे धर्य का अभाव होता है। उसकी 

परिस्थितियों पर पकड़ कम होती है क्योकि उसके उदय का कारण धटना है जो बहुत कम ड्यूरेशन की होती है वो 

परिस्थितियों से जूझ कर नही निकलता।

3.पार्टी बनाते समय साहब का उतना तजुर्बा रहा जितनी भाई की उम्र।

4.साहब ने बताया कि इस दुनिया में क्रांतियां(परिवर्तन) बेशक विचार और तलवार दोनों से हुईं हों परन्तु भारत में 

परिवर्तन मात्र विचार से ही सम्भव है क्योकि विचारों की वजय से ही लोग विरोधियों के गुलाम है इसलिए विचार को 

विचार ही काट सकता है।

5. साहब ने बुद्धिजीवियों को साथ लेकर पार्टी बनाई परन्तु भाई ने तब बनाई जब बसपा से निष्कासित लोग अथवा 

बहन जी से रुष्ठ हुए लोग उनके पास इकठ्ठे हुए। वो लोग इसलिए भाई के पास नही पहुंचे कि यह भाई बहन जी से 

बेहतर मूवमेंट चलाएगा बल्कि यह तो उन लोगों का समूह है जिनका या तो बसपा से टिकिट कटा, या बसपा के 

किसी भी पद से हटाया गया या बसपा से किसी भी कारण से निष्काषित किया गया। यह समूह वैसे ही बिखरेगा 

जैसे राजीव गांधी के कहने पर और उससे बिक कर 20 लोग 90 लोगों को साथ लेकर(कुल110 लोग)साहब की 

बामसेफ से अलग हो गए थे और बाद में उन्ही 20 लोगों ने एक दूसरे से अलग होते हुए 21 अलग अलग बामसेफ 

बनाईं।

6. साहब ने कहा था कि जिस दिन यह(तत्कालीन) मीडिया कांशीराम को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने लगे तो समझ 

जाना कांशीराम विरोधियों के हाथों बिक चुका है। यह मनुवादी मीडिया उसको कभी नही दिखा सकती जिससे 

मिशन को लाभ हो और उनकी व्यवस्था को नुकसान। बाकी आप खुद समझ सकते हो।

7. कांग्रेस साहब की विरोधी इसलिए रही क्योकि साहब के आंदोलन से कांग्रेस का कमजोर होना तय था परंतु भाई 

का साथ कांग्रेस इसलिए दे रही है क्योंकि भाई के काम से कांग्रेस का भविष्य उज्जवल होने की पूरी पूरी संभावना 

हैं। पुरानी जमीन को प्राप्त करने के लिए कांग्रेस 100-200-500 करोड़ भी खर्च कर सकती है। तभी तो चोट भाई 

को लगती है दर्द प्रियंका गांधी वाड्रा(कांग्रेस का सबसे मुख्य चेहरा) को होता है।

आदि।

अतः मेरा सभी साथियों के साथ साथ मुख्य रूप से युवाओं से निवेदन है कि उपरोक्त सभी बातों को समझें और 

बहुजन समाज पार्टी को मजबूत कर महापुरुषों के इस आंदोलन को गति देने में अपना सहयोग सुनिश्चित करें।साथ 

ही साथ पांचवी बार बसपा सरकार बनाने हेतु मा० बहन जी के हाथों को मजबूत करें।

मिशन कांशीराम(मैं भी कांशीराम)

कांशीराम विचार यात्रा(बसपा का विजय रथ)

जय भीम जय भारत जय कांशीराम जय भगतसिंह जय बसपा।

पांचवी बार बसपा सरकार(उत्तर प्रदेश)

- जय प्रकाश सिंह

(पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं नेशनल कोऑर्डिनेटर बसपा

एवं संयोजक मिशन कांशीराम(मैं भी कांशीराम)


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