
बसपा सुप्रीमो मायावती | MAYAWATI LUCKNOW RALLY 2025 लाखों की भीड़ ने विपक्ष के होश उड़ गए है। आईटी सेल जबरन गलत मेसेज वायरल करा रहे जिसमे मायावतीजी बीजेपी के साथ है। विकास कुमार का ये लेख इस वायरल टिपण्णी को लेकर है।
प्रश्न : कल की बसपा रैली को आप किस प्रकार देखते है?
उत्तर : बहनजी ने मनोवैज्ञानिक रूप से एक बड़ा युद्ध जीत लिया है। जिसमे पर्दे के पीछे चल रहा "सपा-भाजपा गठबंधन" को एक झटके में काउंटर कर दिया, जो 2022 में दोनो ने मिलकर बनाया था। में उदाहरण दूँगा की;
"आकाश आनन्द ने 2021 में सार्वजनिक राजनीति में युवाओ से मिलने की घोषणा करी तब मैंने आकाश आनन्द व आनन्द जी को कहा था कि छोटे पम्पलेट, होर्डिंग या अन्य माध्यम से प्रचार को छोड़ो क्योंकि बसपा का प्रचार उंसके युवा फ्री में कर देते है, उंसकी जगह आपको लड़ाई से बाहर दिखाने का नैरेटिव बनाया जा रहा है, उसे काउंटर करने पर ध्यान दो। उस समय के मेरे लेख मेरी वाल पर है। जिसमे यह विस्तार से लिखा हुआ है"
अब हुआ भी ऐसा ही। वर्ष 2022 के चुनाव में बसपा की 1 शीट इसी कारण आई क्योंकि पर्दे के पीछे से सपा-भाजपा ने गठबंधन करके एक समान नीति बनाई की चुनाव रैली, जमीन पर बसपा का न तो नाम लेंगे, न उंसकी चर्चा करेंगे। लोगो को मनोवैज्ञानिक तौर पर ऐसा संदेश देंगे कि बसपा नाम की कोई पार्टी नही है व केवल सपा-भाजपा नाम की ही दो पार्टी चुनाव लड़ रही है। जिसमे दोनो का गठबंधन सफल रहा और बसपा 1 शीट पे सिमट गई।। बहनजी ने हार होने पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे माना था।
अब आज सपा-कोंग्रेस व उनकी समर्थक कार्यकर्ता/पदाधिकारी, रवीश से लेकर paid वर्कर सोशल मीडिया पर "बसपा व बहनजी" की चर्चा कर रहे है। क्या यह;
"मनोवैज्ञानिक युद्ध जितने जैसा नही है?"
विस्तार से
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बहनजी का मेने पूरा भाषण सुना। जिसमे उन्होंने;
1.योगी व मोदी सरकार पर नफरत फैलाने के आरोप लगाए।
2.सँविधान पर हमले हो रहे है। इसे कहा।
3.मुस्लिमो की स्तिथि बदतर हो रही है। इसे कहा।
4.एससी/एसटी पर सरकार ध्यान नही दे रही। कहा।
5.इंहा तक कि धार्मिक बाबा लोगो द्वारा पूर्व के मनुस्मृति कानून लागू करने की मंशा पर प्रहार किया।
6.ब्राह्मण से लेकर अन्य जातियो को जोड़ने की बात कही। श्री सतीश चंद्र मिश्रा ब्राह्मण व उमा शंकर जी क्षत्रिय व विश्वनाथ पाल जी ओबीसी के तौर पर मंच पर बैठाए गए। जिससे समाज मे संदेश जाए कि;
"नफरत, आपसी कटुता की जगह आपसी समन्वय पर ध्यान दे। हमे वर्ग संघर्ष की जगह आपसी समन्वय बनाकर शोषित वर्गों को सम्मान व मानव अधिकार दिलवाने है""
7.यह सभी था। 80% से ऊपर प्रहार योगी-मोदी सरकार रही। क्योंकि सत्ता में वो ही है। एडमिनिस्ट्रेशन के तौर पर उन्हें टारगेट किया गया और केवल एक जगह यह कहा गया कि;.
"यह प्रेरणा स्थल जँहा मान्यवर साहब को याद किया जा रहा है, इस स्थल को सुरक्षित व संरक्षित करने के लिए हमने नीति बनाई थी कि इंहा टिकट लगेगा, जो टिकट का पैसा आएगा, उसे इसी प्रेरणा स्थल पर खर्च करके रखरखाव दुरुस्त रखा जाएगा। लेकिन अखिलेश यादव ने टिकट का पैसा अन्य जगह खर्च करवाया और इस स्थल पर ध्यान नही दिया, जिससे यह स्थल बर्बाद हो जाये। इसलिए हमने सत्ता में बैठी योगी सरकार को पत्र लिखकर टिकट के पैसे पुनः स्थल पर खर्च किये जायें की माँग की जिसे राज्य सरकार ने मान लिया, इसके लिए हम आभारी है"
8.अब प्रश्न यह है कि;
"योगी-मोदी सरकार पर समाज मे नफरत फैलाने, एससी/एसटी का दमन करने, सँविधान पर प्रहार करने वालो को संरक्षण देने, मुस्लिम समाज की दुर्दशा का आरोप लगाने, ब्राह्मण व अन्य समाज को एससी/एसटी से जोड़ने से लेकर तमाम बातें कितने न्यूज पेपर, मीडिया समूह ने दिखाई?"
एक ने भी नही। 90% योगी-मोदी पर किया गया प्रहार नही दिखाया लेकिन मामूली सा एक स्लोगन की प्रेरणा स्थल की सुरक्षा रखरखाव वाली हमारी बात मानी इसलिए आभार, उसे दिखा रही है।
9.अब प्रश्न है कि;
"क्या यह सही हो रहा है?"
10.में इसे पॉजिटिव मान रहा हूँ। क्योंकि;
A. बसपा के खिलाफ नैरेटिव उंसकी स्थापना के समय से फैलाये जाए है। लेकिन बड़े स्तरर पिछले 13 सालों से हावी है। इसलिए कोई नया नैरेटिव आएगा, उसका महत्व नही है। बल्कि पहले कहते थे रैली नही करते, अब करी तो यह नैरेटिव फैला रहे थे कि सपा-कोंग्रेस को नुकसान पहुचाने के लिए रैली कर रहे है।
B. पहली बार 8 साल बाद इतना जोश बसपा समर्थकों में दिखा। इससे पहले सपा-कोंग्रेस मीडिया ने फैलाना शुरू कर दिया था कि बसपा खत्म हो गयी, बसपा रैली नही करती, जनता से रूबरू नही होती, यह पूरा नैरेटिव जो 10 साल से यह पार्टियां बना रही थी वो एक झटके में बसपा समर्थको के दिमाग से इस रैली के कारण हटा। लेकिन यह रैली केवल बसपा समर्थको या पदाधिकारी तक सीमित रहती, इससे आगे नही जाती।
C.लेकिन;
"भाजपा की प्रशंसा करी, इस स्लोगन से यह बात अब मात्र बसपा उत्तर प्रर्देश की 22 करोड़ जनता तक जाएगी, जिससे एक नैरेटिव जो जड़ पर प्रहार था कि "बसपा खत्म छप गयी, बसपा गायब हो गयी, बसपा मैदान में नही है, बसपा नाम की पार्टी है या नही, यह लोगो के दिमाग से खत्म हो जाएगा। बसपा के खिलाफ चलाये गए इस बयाँ से लोगो के दिमाग से यह नैरेटिव खत्म होगा कि बसपा मैदान में है भी या नही।
"
D.इसलिए मुझे लगता है कि "बहनजी ने मनोवैज्ञानिक रूप से जनता के दिमाग से सबसे बड़ा नैरेटिव अथार्त बसपा के मैदान में होने या न होने" को खत्म कर दिया और इसलिए यह बात जानबूझकर बोली गयी, बकायदा लिखकर लाई गई थी।
साभार - विकास कुमार जाटव
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