पुना पैक्ट: हिंसक पर अहिंसा की विजय - ओशो रजनीश पुना पैक्ट: हिंसक पर अहिंसा की विजय - ओशो रजनीश - बहुजन जागृती

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डॉ बाबासाहेब आंबेडकर : बहुजन समाजाची राजनीतिक आणि सामाजिक चळवळ

Saturday, September 4, 2021

पुना पैक्ट: हिंसक पर अहिंसा की विजय - ओशो रजनीश


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यह पूरा का पूरा समाज सदियों से हिंसा से जी रहा है; अहिंसा की तो सब बकवास है, बातचीत है। यहां अहिंसक 

भी अहिंसक नहीं है; यहां अहिंसक भी छिपा हुआ हिंसक है। यहां अहिंसा के पीछे भी सब तरह की हिंसा का 

आयोजन है। यहां अहिंसा भी लड़ने का एक उपाय है। तुम जरा मजा देखो! अहिंसा भी लड़ने का एक उपाय है! 

महात्मा_गांधी की इसलिए प्रशंसा की जाती है कि उन्होंने अहिंसा को अस्त्र बना दिया, लड़ने का एक उपाय बना 

दिया। प्रशंसा नहीं होनी चाहिए; इसके कारण ही निंदा होनी चाहिए। अहिंसा को भी अस्त्र बना दिया! कुछ तो छोड़ 

देते, जो अस्त्र न बनता।


तुमने प्रेम की भी तलवार ढाल ली। तुमने शांति के भी छुरे बना लिये। अहिंसा का भी अस्त्र! अहिंसा को भी लड़ने 

का एक ढंग बना लिया। मगर लड़ाई जारी रही। लड़ने में हिंसा है, तो अहिंसा कैसे लड़ने का साधन हो सकती है? 

तो अहिंसा नाम ही नाम होगी; भीतर तो हिंसा ही हिंसा होगी। यह कोई अहिंसा नहीं है। लोग सोचते हैं कि महात्मा 

गांधी ने बुद्ध और महावीर के आगे कदम उठा दिया। गलत बात है। बुद्ध और महावीर की बड़ी क्रांति पर पानी फेर 

दिया। अहिंसा को भी लड़ने की विधि बना ली; जैसे कि लड़ने की विधि का ही मूल्य है जगत में। सब चीज लड़ने 

की विधि है--प्रेम भी लड़ने का ही एक उपाय है। प्रेम भी करो तो इसलिए ताकि जीत सको। अहिंसा भी इसीलिए 

ताकि दूसरे को दबा सको।

अब एक आदमी अगर तुम्हारे घर के सामने उपवास करके बैठ जाता है कि मैं मर जाऊंगा अगर मेरी न मानी, तो 

तुम सोचते हो यह अहिंसा है? अगर मेरी न मानी तो मैं मर जाऊंगा! यह तो हिंसा है, यह तो सीधी धमकी है। यह तो 

ब्लैकमेल है। यह आदमी तो साफ धमकी दे रहा है कि मैं मर जाऊंगा। यह तुम्हारी मनुष्यता को लज्जित करने की 

कोशिश कर रहा है। यह कह रहा है: याद रखो, जिंदगी-भर फिर पछताओगे; तुमने ही मुझे मारा।

इसी पूना में यह घटना घटी। महात्मा गांधी ने उपवास किया डाक्टर अंबेडकर के विरोध में। क्योंकि डाक्टर 

अंबेडकर चाहते थे कि शूद्रों को, हरिजनों को अलग मताधिकार प्राप्त हो जाये। काश, डाक्टर अंबेडकर जीत गये 

होते तो जो बदतमीजी सारे देश में हो रही है वह नहीं होती। अंबेडकर ठीक कहते थे कि जिन हिंदुओं ने इतने दिन 

तक शूद्रों के साथ अमानवीय व्यवहार किया, उनके साथ हम क्यों रहें? क्या प्रयोजन है? जिनके मंदिरों में हम 

प्रविष्ट नहीं हो सकते, जिनके कुओं से हम पानी नहीं पी सकते, जिनके साथ हम उठ-बैठ नहीं सकते, जिन पर 

हमारी छाया पड़ जाये तो जो अपवित्र हो जाते हैं--उनके साथ हमारे होने का अर्थ क्या है? उन्होंने तो हमें त्याग ही 

दिया है, हम क्यों उन्हें पकड़े रहें?

यह बात इतनी सीधी-साफ है, इसमें दो मत नहीं हो सकते। लेकिन महात्मा गांधी ने उपवास कर दिया। वे अहिंसक 

थे, उन्होंने अहिंसा का युद्ध छेड़ दिया! उन्होंने उपवास कर दिया कि मैं मर जाऊंगा, अनशन कर दूंगा। यह तो 

बड़ी संघातक हानि हो जायेगी हिंदुओं की। हरिजन तो हिंदू हैं और हिंदू ही रहेंगे। उनका लंबा उपवास, उनका 

गिरता स्वास्थ्य, अंबेडकर को अंततः झुक जाना पड़ा। अंबेडकर राजी हो गये कि ठीक है, मत दें अलग 

मताधिकार। और इसको गांधीवादी इतिहासज्ञ लिखते हैं--अहिंसा की विजय! अब यह बड़ी हैरानी की बात है इसमें 

अहिंसक कौन है? अंबेडकर अहिंसक है। यह देखकर कि गांधी मर न जायें, वह अपनी जिद छोड़े। इसमें गांधी 

हिंसक हैं। उन्होंने अंबेडकर को मजबूर किया हिंसा की धमकी देकर कि मैं मर जाऊंगा।

इसको थोड़ा समझना, अगर तुम दूसरे को मारने की धमकी दो तो यह हिंसा, और खुद को मारने की धमकी दो तो 

यह अहिंसा; इसमें भेद कहां है? एक आदमी तुम्हारी छाती पर छुरा रख लेता है और कहता है निकालो जेब में जो 

कुछ हो--यह हिंसा। और एक आदमी अपनी छाती पर छुरा रख लेता है वह कहता है निकालो जो कुछ जेब में हो, 

अन्यथा मैं मार लूंगा छुरा। तुम सोचने लगते हो कि दो रुपट्टी जेब में हैं, इसके पीछे इस आदमी का मरना! भला-

चंगा आदमी है, एक जीवन का खो जाना...तुम दो रुपये निकालकर दे दिये कि भइया, तू ले ले, और जा। दो रुपये 

के पीछे जान मत दे। इसमें कौन अहिंसक है? मैं तुमसे कहता हूं: डाक्टर अंबेडकर अहिंसक हैं, गांधी नहीं। मगर 

कौन इसे देखे, कैसे इसे समझा जाये? इसमें लगता ऐसे है, अहिंसा की विजय हो गयी; अहिंसा हार गयी, इसमें 

हिंसा की विजय हो गयी। गांधी हिंसक व्यवहार कर रहे हैं। जो तर्क नहीं दे सकता, वह इस तरह के व्यवहार करता 

है।

– ओशो | मरो हे जोगी मरो - प्रवचन - 04 - अदेखि देखिबा





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