मंदिर का धन सार्वजनिक करनेपर , क्या भगवान बुरा मान जाएंगे?, नाराज हो जाएंगे? या खुशी महसूस करेंगे? मंदिर का धन सार्वजनिक करनेपर , क्या भगवान बुरा मान जाएंगे?, नाराज हो जाएंगे? या खुशी महसूस करेंगे? - बहुजन जागृती

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डॉ बाबासाहेब आंबेडकर : बहुजन समाजाची राजनीतिक आणि सामाजिक चळवळ

Monday, May 18, 2020

मंदिर का धन सार्वजनिक करनेपर , क्या भगवान बुरा मान जाएंगे?, नाराज हो जाएंगे? या खुशी महसूस करेंगे?





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यदि उनके मंदिरों की संपत्ति स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने, डॉक्टरों-नर्सों के लिये सुरक्षा उपकरण खरीदने, 

कोराना वैक्सीन विकसित करने और और लॉक डाउन के चलते रोजी-रोटी के साधन खो चुके लोगों की आर्थिक 

मदद के लिए खर्च कर दिया जाए?

देश के 9 मंदिरों के पास कुल इतना रूपया है, जिसे गिनना भी मुश्किल है। वे उन 9 मंदिरों के नाम...

ये 9 मंदिर निम्न हैं- 

पद्मनाभ स्वामी ( केरला), 

तिरूमला तिरूपति बेंकटेश्वरा ( आंध्रप्रदेश), 

शिर्डी साईं बाबा ( शिर्डी महाराष्ट्र), 

बैष्णव देवी ( जम्मू-कश्मीर), 

सिद्धि विनायक ( मुंबई),

मीनाक्षी टेंपल ( तमिलनाडु), 

जन्नाथ मंदिर ( पुरू,उड़ीसा), 

काशी विश्वनाथ मंदिर ( काशी,उत्तर प्रदेश), 

सोमनाथ मंदिर ( गुजरात)

अकेले पद्मनाभ स्वामी ( केरला) के पास 13,60,99,90,00,000 रूपए ( 20 विलियन डॉलर ) है , 1 लाख 50 

हजार  करोड़ रूपया है।

तिरूमला तिरूपति बेंकटेश्वरा ( आंध्रप्रदेश) मंदिर की प्रतिवर्ष सिर्फ लड़्डू से कमाई 82 हजार 5 सौ करोड़ ( 11 

बिलियन डॉलर ) है और प्रतिवर्ष इसे करीब 650 करोड़ रूपया दान से प्राप्त होता है।

शिर्डी साईं बाबा ( मुंबई) मंदिर के पास 32 करोड़ के सोने-चांदी और 6 लाख रूपए के सिक्के हैं। प्रतिवर्ष इस 

मंदिर को करीब 360 करोड़ दान से प्राप्त होता है।

बैष्णव देवी ( जम्मू-कश्मीर) इसे करीब 500 करोड़ वार्षिक आय होती है।

सिद्धि विनायक ( मुंबई), इसे प्रति वर्ष 48 से 125 करोड़ रूपए की आय प्राप्त होती है।

मीनाक्षी टेंपल ( तमिलनाडु), इसे करीब 6 करोड़ रूपया प्रति वर्ष प्राप्त होता है।

एक अनुमान के मुताबिक देश कोरोना संकट से निपटने के लिए करीब 5 लाख करोड़ रूपए की जरूरत 5-6 

महीने के बीच पड़ेगी। सिर्फ इन मंदिरों से इसका आधे से अधिक हिस्सा जुटाया जा सकता है, क्यों न जुटाया 

जाए?

इन मंदिरों का सारा धन भारत की जनता की गाढ़ी कमाई का ही है। यदि विजय माल्या या मुकेश अंबानी और 

फिल्मी सितारे इन मंदिरों को सोने के मुकुट भेंट करते हैं या अन्य रूपों में दान करते हैं, तो वह भी मेहनतकश 

लोगों की कमाई का ही एक हिस्सा है।

जब पूरी मानवता, देश और विशेषकर मेहनत-मजदूरी करने वालों का जीवन संकट में है, तो ऐसे समय में क्या 

इन मंदिरों का ( जनता द्वारा भेंट किया गया) धन जनता के लिए क्यों खर्च नहीं किया जा सकता है।

क्या मानवता, देश और मेहनत-मजूरी करने वालों के लिए यह धन खर्च करने पर भगवान बुरा मान जाएंगे? 

नाराज हो जायेंगे और श्राप दे देंगे? य़ा भक्त नाराज हो जाएंगे? या असल बात यह है कि इन मंदिरों पर कुंडली 

मारे बैठे पुरोहित और ट्रस्टी ऐसा नहीं करने देंगे?

भगवान सबके हैं, भगवान का धन सबका धन है, तो क्यों न इन मंदिरों के धन को सार्वजनिक संपत्ति घोषित कर 

दिया जाए और कोरोना जैसी आपदा से लड़ने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए?

हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने कहा की आज देश की आर्थिक हालात देखकर सरकार 

को मंदिरों में दान दिए गए सोने का उपयोग करना चाहिए। उनके इस बयान से देशभर के कई पंडितों ने 

पृथ्वीराज चौहान को अपना निशाना बनाया है और कहा की ये सम्पति मंदिरों की है।
अब देखना ये है की सरकार इस के लिए क्या कदम उढ़ाती है। 



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