हमारे समाज को, षड्यंत्र कारियों ने अछूत क़रार देकर के समाज के मुख्य धारा से बुरी तरह से अलग कर दिया
है ।
सदियों से अछुत होने की सज़ा भुगत रहे चमारों ने बार-बार हिन्दू धर्म से आपने आप को अलग करने की
कोशिश की,लेकिन हर बार असफल ही रहें हैं ।
हमारे कुछ लोगों ने प्रचलित धर्म , ईसाई , इस्लाम , सिख आदी धर्मों मे धर्मांतरण किया , लेकिन अछूत होंने के
बाबा साहेब का धर्मांतरण सिर्फ़ अछूतों के ख़ातिर
बेशक ! बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को अन्य सभी विषयों पर विश्वलीडर के रुप मे देखा जाता हैं, लेकिन उन्होंने
दलित ,हरिजन नहीं ! अब चमारों को " बुद्धिस्ट " इस नाम से पेश होना चाहिए
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी को भारत के लोग किस रूप में देखते हैं यह उनका अधिकार हैं। लेकिन सभी
अछूत और शेड्यूल कास्ट
हिन्दू धर्म ग्रंथों मे ख़ास कर चमारों को हिन्दू धर्म से अलग दिखाने के लिए ही "अछूत" इस शब्द का प्रयोग किया
बुद्धिस्ट और शेड्यूल कास्ट
बुद्धिस्ट यह एक अलग संस्था है और शेड्यूल कास्ट भी एक अलग संस्था है । लेकिन अछूतों को अपने जीवन में
अनुसूचित जातियों के लिए बौद्ध धर्मांतरण का लीगल , सरल और आसान तरीक़ा
बुद्धिस्ट-शेड्यूल कास्ट एक लीगल और सम्यक् धर्मांतरण मूव्हमेंट हैं ।सभी भारतीय नागरिक मूलभूत अधिकार
हमें इसका फ़ायदा उठाना चाहिए
जैसे,आवेदन फ़ॉर्म में हिन्दू धर्म लिखकर हम लोग अपनी जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त किया करते थे , ठिक वैसे
चूक कहाँ हुई ?
"बौद्ध धर्म मे जाति नहीं होती "
कहकर हम लोगों ने शेड्यूल कास्ट प्रमाण पत्र लेने से इन्कार कर दिया, इसीलिए कुछ समय तक महाराष्ट्र में
हमारे कुछ लोगों ने प्रचलित धर्म , ईसाई , इस्लाम , सिख आदी धर्मों मे धर्मांतरण किया , लेकिन अछूत होंने के
कारण प्रस्थापित लोगों ने उन्हें अलग-अलग नाम देकर के उस धर्म की मुख्य धारा में सम्मिलित होने से मना कर
दिया , अलग हीं रखा ।
कुछ हमारे लोगों ने अपने ही संत,महात्माओं के नाम पर जैसे बाल्मीकि, मातंग ऋषि , हरालिया , कक्कय्या ,
कुछ हमारे लोगों ने अपने ही संत,महात्माओं के नाम पर जैसे बाल्मीकि, मातंग ऋषि , हरालिया , कक्कय्या ,
चन्नय्या , रामनामी , सतनामी , रामदासी ,रविदासी , आदि धर्मी , कबीर पंथी आदी.... पंथ/धर्म बनाकर के हिन्दू
धर्म से अलग होने का प्रयास तो किया, लेकिन हिन्दू धर्म की नक़ल करते-करते हिन्दू धर्मी बनकर रह गए । यह
सभी नाम आगे चलकर अब अछूत जाति के नाम के रूप में गिने जाते हैं ।
नाम बदलकर सामाजिक पहचान बदलने के प्रयास को आगे बढ़ाते हुए हमारे कुछ लोगों ने चर्मकार, अहिरवार,
नाम बदलकर सामाजिक पहचान बदलने के प्रयास को आगे बढ़ाते हुए हमारे कुछ लोगों ने चर्मकार, अहिरवार,
मेघवाल, रैगर, समगर, माला, मादीगा, मातंग, जाटव, पासी-पासवान आदी... नाम बदलकर अपनी पहचान
छुपाने की कोशिश भी की लेकिन यह सभी नाम अब हिन्दू धर्म में अछूत जातियों के नाम के रुप प्रमाणित किए
जाते हैं । इस तरह परम्परागत हीन कार्यों और लगातार बदले हुए नामों के कारण भारत वर्ष में कभी " चमार "
इस एक ही नाम की पहचान से "मशहुर कारोबारी " यह अखंड समाज आज लगभग 1200 जातियों में बँट चुका
है । गुरू रविदासजी अपने संपूर्ण जीवन काल में अछूत जातियों को "चमार" इस नाम से संबोधित करते थे ।
13 अक्तूबर 1935 येवला, महाराष्ट्र में बाबा साहेब द्वारा धर्मांतरण की घोषणा करने के बाद अछूतों में धर्म बदलने
धर्मांतरण पर चमारों को बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की चेतावनी
की होड़ लग गई थी । धर्म बदल करने वाले अपने लोगों को उस समय बाबा साहेब ने चेतावनी दी थी की, "एक-
एक करके धर्मांतरण करने से अछूतों को कुछ भी हासिल नहीं होगा, जब सभी 7 करोड़ अछूत(उस समय)
किसी एक धर्म में एक साथ धर्मांतरण करेंगे तो तुम्हें हिमालय ध्वस्त करने की शक्ति प्राप्त होगी, हम सब एक
साथ मिलकर धर्मांतरण करेंगे, जल्दबाजी मत करो और इंतज़ार करो" आगे 14 अक्तूबर 1956 नागपुर में बाबा
साहेब ने लगभग 7 लाख अनुयाइयों के साथ बौद्ध धर्मांतरण करके समस्त अछूत जातियों को बौद्ध धर्म के
दरवाज़े खुले कर दिए । इस पर कुछ लोग कहते हैं की बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने बुद्ध धर्म इसलिए अपनाया
है क्योंकि, बुद्ध धर्म दुनिया में सबसे अच्छा धर्म है । मेरे विचार से यह सत्य नही है, क्यूँकि उस समय यदि पाँच-
दस करोड़ प्रस्थापित बौद्ध धर्मी पहले से हीं भारत में होते, तो क्या बाबा साहेब बौद्ध धर्म अपनाते? इसका जवाब
है नहीं । क्योंकि ,बौद्ध धर्म दुनिया में सबसे अच्छा धर्म होने के बावजूद भारत में कोरे काग़ज़ की तरह ख़ाली
पड़ा था । अछूतों के धर्म बदलने के पिछले अनुभव को देखते हुए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी ने बौद्ध धर्म के
भारत में कोरे काग़ज़ की तरह ख़ाली पड़े होने को ज्यादा महत्त्व दिया है ताकी भारत में बुद्ध धर्म पर अछुत
चमारों का ही कन्ट्रोल रहे और उसमें उन्हें नीच कहनेवाला कोई भी नहीं होगा । बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म को
अपनाकर इतिहास में पहली बार अछूतों,चमारों को बौद्ध धर्म में एक संघ होकर के ताक़तवर बनने का आवसर
प्रदान किया है । इसका हमें फ़ायदा उठाना चाहिए।
बाबा साहेब का धर्मांतरण सिर्फ़ अछूतों के ख़ातिर
बेशक ! बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को अन्य सभी विषयों पर विश्वलीडर के रुप मे देखा जाता हैं, लेकिन उन्होंने
बौद्ध धर्मांतरण सिर्फ़ और सिर्फ़ अछूतों के ख़ातिर ही किया है । हिन्दू समाज की ज़मीनी हक़ीक़त भी यही है ।
हिन्दू धर्म मे जिन्हें बहुजन कहा जाता है , यादव, मोदी, मराठा, पेटेल , ( SC , OBC ) भटके, आदिवासी, बंजारा
( ST , NT , DNT ,VJNT ) क्या यह लोग अछूत हैं ? नहीं । क्या इन्हें हिन्दू मंदिरों में जाने पर प्रतिबंध है ? नहीं ।
क्या इन्हें कभी तालाबों मे पानी पीनें पर प्रतिबंध था ? नही। जिन्हें मुलनिवासी बहुजन कहाँ जाता है आख़िर हिन्दू
धर्म क्यूँ छोड़ेंगे ? धार्मिक विषयों पर सभी सवर्ण हिन्दू समाज एक हो कर के जिते हैं।किन्तु अछूतों के साथ ऐसा
नहीं है। हिन्दू धर्म के क़ानून और सवर्ण हिन्दू समाज धार्मिक विषयों पर अछूतों के ख़िलाफ़ चलते हैं । इसीलिए
सिर्फ़ अछूतों को ही हिन्दू धर्म से अलग होने की आवश्यकता हैं । बाबा साहेब अछूतों को हिन्दू समाज से कभी
भी अलग करना नहीं चाहते थे, वे सिर्फ़ हिन्दू धर्म से अछूतों को अलग करना ज़रूरी समझते थे । अछूतों के
लिए बौद्ध धर्म का चयन करके बाबा साहेब ने हिन्दू समाज और अछूतों का हिन्दू धार्मिक ग़ैर बराबरी वाला
रिस्ता तोड़कर के बराबरीवाला अटूट रिस्ता सदा के लिए भारतीयता से जोड़ कर के अखंड भारत को और
अधिक मजबूत बनाया है ।
दलित ,हरिजन नहीं ! अब चमारों को " बुद्धिस्ट " इस नाम से पेश होना चाहिए
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी को भारत के लोग किस रूप में देखते हैं यह उनका अधिकार हैं। लेकिन सभी
अछूत , बाबा साहेब को एक पिता के रूप में देखते हैं, और सदियों से यह परंपरा चली आ रही हैं की पिता का
धर्म ही अगली पीढ़ियों को विरासत में मिलता है । पिछले लगभग 60 वर्षों से हम लोग उत्तराधिकारी के रूप में
जिनकी हर एक चीज़ पर पहला आधिकार जताते आ रहे हैं वे बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर अब हिन्दू नहीं,बल्कि
बौद्ध हैं । जब हमारे पिता बुद्धिस्ट हैं तो हम लोग अपने आप को दलित , हरिजन के रूप में दुनियाँ के सामने क्यूँ
पेश करते हैं ? बाबा साहेब से विरासत में हमें बौद्ध धर्म मिला है इसीलिए हम सभी अछूतों को अपने आप को
बुद्धिस्ट के रूप में दुनिया के सामने पेश करना चाहिए, तब जा कर के अन्य लोग भी हमें बुद्धिस्ट कहेंगे । हमारे
पहली पीढ़ी को बच्चों के स्कूल दाखिले से आरंभ करते हुए आवश्यकता के अनुसार सभी निजी व सरकारी
दस्तावेज़ पर धर्म बौद्ध लिखना आरम्भ कर देना चाहिए । अपनें आप को बुद्धिस्ट पेश करना तथा सभी नीजी व
सरकारी दस्तावेज़ में धर्म बौद्ध लिखनें के बाद, बुद्धिस्ट संस्कार हमारे समाज की आवश्यकता बन जाएगी और
आवश्यकता को ही आविष्कार की जननी कहते हैं । उसके बाद ही आप को इस भारत वर्ष में रियल बौद्ध
समाज का दर्शन होगा ।
अछूत और शेड्यूल कास्ट
हिन्दू धर्म ग्रंथों मे ख़ास कर चमारों को हिन्दू धर्म से अलग दिखाने के लिए ही "अछूत" इस शब्द का प्रयोग किया
गया है । अछूत कहकर हमें हिन्दू मंदिरों में जाने नहीं दिया जाता है । अछूत कहकर हमें तालाबों मे पानी पीनें
नहीं दिया जाता था। अछूत कहकर हमें गाँव के बाहर रखा जाता था.. आदि ऐसे मुद्दों को आधार मानकर के तय
किया गया की यह जातियाँ हिन्दू नही हैं । हिन्दू धर्म से अलग बहिष्कृत अछुत जातियों की उस समय के
जनगणना आयुक्त जे. एच. हटन नें सन 1931 में गणना की , और बताया की भारत में अछूतों की 1108 जातियाँ
हैं(उस समय)। उसकी एक सूची बनाई । सूची का मतलब है " शेड्यूल " । इस सूची में अंतर्भूत जातियों को ही "
शेड्यूल कास्ट " कहा जाता है । आगे बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर जी नें भारत का संविधान बनाते समय सन
1931 में बना यह शेड्यूल जैसा है वैसा ही भारतीय संविधान में अंतर्भूत करके, संविधान भाग : 16 क़लम : 330
से 341 और परिशिष्ट : 5 बनाकर के शेड्यूल कास्ट को संविधान का अटूट हिस्सा बना दिया है । किसी धर्म के
कारण नहीं बल्कि भारतीय संविधान के तहत अछूतों को " शेड्यूल कास्ट " का दर्जा और नया नाम व नव
-पहचान प्राप्त हुई है ।
बुद्धिस्ट और शेड्यूल कास्ट
बुद्धिस्ट यह एक अलग संस्था है और शेड्यूल कास्ट भी एक अलग संस्था है । लेकिन अछूतों को अपने जीवन में
इस दोनों संस्थाओं का इस्तेमाल एक साथ करना आवश्यक हो गया है । इसीलिए बुद्धिस्ट और शेड्यूल कास्ट
को अलग-अलग कर के देखने की हमें आदत डालनी होगी । बुद्धिस्ट का मतलब सभी धार्मिकताओं, अंधविश्वास
से अपने आप को मुक्त करना , और शेड्यूल कास्ट का मतलब सभी संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करने का
ज़रिया समझना होगा। जहाँ बुद्धिस्ट कहनें से हमेशा के लिए हमारा धर्म बदल जाएगा और जब तक
आवश्यकता है तब तक शेड्यूल कास्ट कहते रहेंगे तो हमें आरक्षण , संरक्षण और अन्य सुविधाएँ भी मिलती
रहेगी । अछूतों के लिए बुद्धिस्ट- शेड्यूल कास्ट एक ऐसी संकल्पना है जहाँ " साँप भी मर जाये और लाठी भी न
टूटे " मतलब हमारा धर्म भी बदल जाएगा और जब तक आवश्यकता है संविधान में शेड्यूल भी बना रहेगा । धर्म
बदलने के बाद भी शेड्यूल कास्ट में रहनें से जाति के लोग साथ रहेंगे और जाति से बहिष्कृत हो जाने का डर भी
ख़त्म हो जाएगा ।
अनुसूचित जातियों के लिए बौद्ध धर्मांतरण का लीगल , सरल और आसान तरीक़ा
बुद्धिस्ट-शेड्यूल कास्ट एक लीगल और सम्यक् धर्मांतरण मूव्हमेंट हैं ।सभी भारतीय नागरिक मूलभूत अधिकार
के तहत अपना धर्म बदल सकते हैं, लेकिन शेड्यूल कास्ट के नागरिक यदि बौद्ध धर्म स्विकार करते हैं, तो
उनका धर्म बदलने के बाद भी शेड्यूल कास्ट की सदस्यता बनी रहेगी , समाप्त नहीं होगी।इसके लिए हमें केवल
लिखना है, पहले हम हिन्दू धर्म के साथ अपनी जाति-चमार, महार..आदि लिखते थे वैसे ही बौद्ध धर्म के साथ
अपनी अनुसूचित जाति लिखने मात्र से ही आपका धर्म बदल कानूनी माना जाता है ।यह प्रावधान बाबा साहेब
डॉ. अम्बेडकर जी नें *कांस्टीट्यूशन शेड्यूल कास्ट ऑर्डर 1950* क़लम *341* में पहले से कर के रखा है ।
हमें इसका फ़ायदा उठाना चाहिए
जैसे,आवेदन फ़ॉर्म में हिन्दू धर्म लिखकर हम लोग अपनी जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त किया करते थे , ठिक वैसे
हीं आवेदन फ़ॉर्म में बौद्ध धर्म लिखकर भी आप अपनी जाति का प्रमाण-पत्र प्राप्त कर सकते हैं । इस तरह
स्कूल, कॉलेज , सरकारी नौकरी , चुनाव आदि... जहाँ पर भी आवेदन फ़ॉर्म भरना ज़रूरी है , धर्म के कॉलम में "
बौद्ध " तथा जाति के कॉलम में अपनी जो भी जाति है को भी लिखना आवश्यक है । यदि आप के पास पहले से
शेड्यूल कास्ट प्रमाण पत्र , कास्ट व्हॉलिडिटी प्रमाण पत्र है तो , बौद्ध बनने के बाद भी यह सभी प्रमाण पत्र
क़ानूनी तौर पर मान्य हैं ।
चूक कहाँ हुई ?
"बौद्ध धर्म मे जाति नहीं होती "
कहकर हम लोगों ने शेड्यूल कास्ट प्रमाण पत्र लेने से इन्कार कर दिया, इसीलिए कुछ समय तक महाराष्ट्र में
बौद्धों का आरक्षण बंद भी हो गया था । बाद मे नव बौद्ध या धर्मांतर के पहले के महार के नाम से बौद्धों को
आरक्षण मिल भी गया , लेकिन केन्द्र सरकार ने इस जाति प्रमाण पत्र पर आरक्षण देने से मना कर दिया । उसके
बाद जो नहीं होना चाहिए था वही हो गया । बौद्ध धर्मांतरण करने से आरक्षण बंद हो जाता है इस झूठी ख़बर से
अछूतों में डर पैदा हो गया । जिसके कारण जनगणना में लगभग 25 करोड़ अछूतों में से सिर्फ़ लगभग 84 लाख
अछूतों ने ही बौद्ध धर्म लिखा है और लगभग 24 करोड़ अछूत आज भी हिन्दू धर्म लिखने के लिए मजबूर हैं ।
तो हमें क्या करना चाहिए ?
बहाने बनाना बंद करना चाहिए ।
बहाना नं.1) - मै देवी-देवताओं को नहीं मनता इसलिए मैं हिंन्दू नहीं हूँ ।
2 ) मैं मनूवाद , जातिवाद , रूढ़ीवाद नहीं मानता इसलिए मैं हिन्दू नहीं हुँ ।
3) मैं नास्तिक हुँ , मैं कर्मकांड नहीं करता इसलिए मैं हिन्दू नहीं हुँ । आदि...
सिर्फ कहने मात्र से कोई हिन्दू धर्म से अलग नहीं होता,हिन्दू ही रहता हैं,इसके लिए हमें अपना धर्म बौद्ध लिखना
तो हमें क्या करना चाहिए ?
बहाने बनाना बंद करना चाहिए ।
बहाना नं.1) - मै देवी-देवताओं को नहीं मनता इसलिए मैं हिंन्दू नहीं हूँ ।
2 ) मैं मनूवाद , जातिवाद , रूढ़ीवाद नहीं मानता इसलिए मैं हिन्दू नहीं हुँ ।
3) मैं नास्तिक हुँ , मैं कर्मकांड नहीं करता इसलिए मैं हिन्दू नहीं हुँ । आदि...
सिर्फ कहने मात्र से कोई हिन्दू धर्म से अलग नहीं होता,हिन्दू ही रहता हैं,इसके लिए हमें अपना धर्म बौद्ध लिखना
पड़ेगा।इसलिए सामाज के बुध्दिजीवियों, पढ़ेलिखे लोगों को अछूतों के बौद्ध धर्मांतरण की आवश्यकता पहचान
कर आगे बढ़ना चाहिए ।
भारतीय जनगणना - 2021
धर्म - बौद्ध( Buddhist)
जाति-चमार,महार,दुसाध,पासी,धोबी...आदि लिखिए!
अब की बार,
धर्म बौद्ध लिखेंगे,
दस करोड़ चमार..
1)पहली पीढ़ी में सिर्फ लिखेंगे !
2)दूसरी पीढ़ी में सीखेंगे !
3)तीसरी पीढ़ी सही मायने में बुद्धिस्ट पहचान हासिल कर पाएगी !
हरेन्द्र कुमार अम्बेडकर | राष्ट्रीय उपसंयोजक सह बिहार प्रभारी | दि बुद्धिस्ट-शेड्यूल कास्ट मिशन ऑफ इंडिया
M-8210442088
भारतीय जनगणना - 2021
धर्म - बौद्ध( Buddhist)
जाति-चमार,महार,दुसाध,पासी,धोबी...आदि लिखिए!
अब की बार,
धर्म बौद्ध लिखेंगे,
दस करोड़ चमार..
1)पहली पीढ़ी में सिर्फ लिखेंगे !
2)दूसरी पीढ़ी में सीखेंगे !
3)तीसरी पीढ़ी सही मायने में बुद्धिस्ट पहचान हासिल कर पाएगी !
हरेन्द्र कुमार अम्बेडकर | राष्ट्रीय उपसंयोजक सह बिहार प्रभारी | दि बुद्धिस्ट-शेड्यूल कास्ट मिशन ऑफ इंडिया
M-8210442088
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