पंजाब में बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन कुछ दिन पहले हुआ था। और आनेवाले इलेक्शन में अकाली का सीएम बनाना तय था। इस बात को समझते हुए कोंग्रेस ने महाराष्ट्र फार्मूला पँजाब में अपनाया है, बसपा ने चारों खाने कोंग्रेस को चित कर दिया था, इसलिए जिस प्रकार महाराष्ट्र में कोंग्रेस ने दलित वर्ग का बेवकूफ बनाया था, उसे पँजाब में लागू किया है।
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। कोंग्रेस दिक्कत में थी, बसपा जितना उभर रही थी कोंग्रेस को डर लग रहा था।कोंग्रेस के राज्य शासन में एक मे भी एससी मुख्यमंत्री नही था। ऐसे में एससी वोटर को भृमित करने कर लिए योजना बनाई गई, बसपा के उभार से महाराष्ट्र में दलितों के कोंग्रेस से खिसकने का चलन शुरू हो रहा था इसलिए जब देखा कि डेढ़ साल बाद महाराष्ट्र में चुनाव है, इसलिए दिल पर बड़ा पत्थर रखकर "विलासराव देहमुख" Vilasrao Deshmukh की जगह "सुशील कुमार शिंदे" Sushil kumar Shinde को मुख्यमंत्री बन दिया गया। डेढ़ साल मुख्यमंत्री रहे, इस बीच मे मई में लोकसभा चुनाव हुए, दलितों का वोट भरपूर मिला और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बना दिये गए। कोंग्रेस पहली रणनीति में सफल हुई। अब अक्टूबर में महाराष्ट्र में चुनाव हुए, "शुशील कुमार शिंदे" के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया, उन्हें पुनः मुख्यमंत्री बनने के तौर पर प्रस्तुत किया गया। कोंग्रेस फिर जीत गयी।
ऐसा लग की सुशील कुमार शिंदे मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन हाईकमान का आदेश आया कि "विलासराव देशमुख" मुख्यमंत्री बनेंगे। शिंदे डेढ़ साल ही मुख्यमंत्री रहे। अब कोंग्रेस ने डेढ़ साल एक एससी को मुख्यमंत्री पद पर किस प्रकार झेला होगा, इससे अंदाज लगाए की मनमोहन कार्यकाल के समय कई राज्यो इंहा तक कि 18 राज्यो तक मे कोंग्रेस सरकार थी, उनमे से महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एससी था, उसे भी हटा दिया गया।
क्या था कांग्रेस का महाराष्ट्र मॉडल
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। कोंग्रेस दिक्कत में थी, बसपा जितना उभर रही थी कोंग्रेस को डर लग रहा था।कोंग्रेस के राज्य शासन में एक मे भी एससी मुख्यमंत्री नही था। ऐसे में एससी वोटर को भृमित करने कर लिए योजना बनाई गई, बसपा के उभार से महाराष्ट्र में दलितों के कोंग्रेस से खिसकने का चलन शुरू हो रहा था इसलिए जब देखा कि डेढ़ साल बाद महाराष्ट्र में चुनाव है, इसलिए दिल पर बड़ा पत्थर रखकर "विलासराव देहमुख" Vilasrao Deshmukh की जगह "सुशील कुमार शिंदे" Sushil kumar Shinde को मुख्यमंत्री बन दिया गया। डेढ़ साल मुख्यमंत्री रहे, इस बीच मे मई में लोकसभा चुनाव हुए, दलितों का वोट भरपूर मिला और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बना दिये गए। कोंग्रेस पहली रणनीति में सफल हुई। अब अक्टूबर में महाराष्ट्र में चुनाव हुए, "शुशील कुमार शिंदे" के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया, उन्हें पुनः मुख्यमंत्री बनने के तौर पर प्रस्तुत किया गया। कोंग्रेस फिर जीत गयी।
ऐसा लग की सुशील कुमार शिंदे मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन हाईकमान का आदेश आया कि "विलासराव देशमुख" मुख्यमंत्री बनेंगे। शिंदे डेढ़ साल ही मुख्यमंत्री रहे। अब कोंग्रेस ने डेढ़ साल एक एससी को मुख्यमंत्री पद पर किस प्रकार झेला होगा, इससे अंदाज लगाए की मनमोहन कार्यकाल के समय कई राज्यो इंहा तक कि 18 राज्यो तक मे कोंग्रेस सरकार थी, उनमे से महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एससी था, उसे भी हटा दिया गया।
अब कोंग्रेस का पंजाब मॉडल
अब पँजाब में बसपा ने शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन करके कोंग्रेस को कंही का न छोड़ा, सरकार अकाली व बसपा की बननी तय है। इसलिए दिल पर बहुत बड़े वाला पत्थर रखकर;
"केवल कुछ माह के लिए एक एससी चरनजीत सिंह चन्नी" को मुख्यमंत्री बना रही है। चुनाव बाद फिर से खत्री सिख को बना देगी।
मजेदार बात यह है कि; "चरनजीत सिंह चन्नी पँजाब की चमार जाति की शाखा रामदासी से है और मान्यवर कांशीराम जी भी रामदासी सिख परिवार से थे"
वास्तव में;
"चरनजीत सिंह चन्नी को दिल से बसपा को ही धन्यवाद देना चाहिए"
#charanjitsinghchanni
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